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संयम जीवन के पचास वर्ष पर श्रद्धांजलि और शुभकामनाएँ

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संयम जीवन के 50 वर्ष अर्थात् अर्धशती पूर्ण कर लेना एक बड़ी उपलब्धि होती है। यह समय केवल स्मृति करने का ही नहीं अपितु उन पलों को जीने का समय है। जितना संभव हो उन पलों का साक्षात्कार करने का प्रयास हो। आचार्यश्री तुलसी के असीम, अनंत आशीर्वाद से उस परम दिव्य आत्मा के श्रीमुख से आपको संयमरत्न की प्राप्ति हुई। संयम जीवन के पचास वर्ष की संपन्नता पर अल्पज्ञ सहोदर मुनि रमेश कुमार की ओर से आत्मिक, आध्यात्मिक मंगलकामनाएं। आप सदा निरामय रहते हुए निर्मलता से संयम साधना कराते रहें, संघ का गौरव बढ़ाते रहें।

मुझे गौरव है कि मैं सेवाभावी साध्वीश्री उज्ज्वलरेखाजी का कनिष्ठ सहोदर हूँ। आप मेरी संसारपक्षीय भगिनी ही नहीं बल्कि माता सदृश भी हैं। आपका मेरे ऊपर स्नेह, वात्सल्य है, वैसा बहुत कम भाईयों के भाग्य में होता है।

हम संसार पक्ष में चार भाई और तीन बहनों में मैं सबसे छोटा और साध्वी उज्ज्वलरेखाजी बहिनों में सबसे छोटी बहन हैं। मैं बचपन में कुछ चंचल-निर्भीक रहा। चंचलता के कारण, समझ की कमी के कारण बहुत कुछ उल्टे-पुल्टे काम भी कर लेता। घर में डाँट भी मिलती परंतु छोटा होने के कारण पूरे परिवार का असीम प्यार भी मिलता। वे बचपन के प्रसंग हैं, चाहे मेरा बायां हाथ फ्रैक्चर हुआ, अंधेरी रात में दवा लाने कहीं जाना हो या मेरे साथियों के घटना प्रसंग मेरे अल्हड़ बचपन की याद कराते हैं। उन सभी में साध्वी उज्ज्वलरेखाजी एवं मेरी संसारपक्षीय माताश्री सुरक्षा ढाल बनकर मेरी सदैव रक्षा, सुरक्षा, संरक्षण करातीं।

जयपुर में आपके दीक्षा के समय मैं बहुत ही उदास एवं अनमना भी रहा। परंतु मैंने दीक्षा लेकर पुनः अपनी वरिष्ठ भगिनी का आत्मिक स्नेह प्राप्त किया।

आपने आचार्यश्री तुलसी की यशस्वी, तेजस्वी, प्रभावी अनुशासना में अपना सर्वांगीण विकास किया। संघीय व्यवस्था के अनुरूप आपको उस समय की तेजस्वी, प्रभावशाली शासनश्री साध्वी मोहनाजी (राजगढ़) के ग्रुप में रखा। वहां आपने साधुत्व का हर दिशा में विकास किया। कुछ वर्षों के पश्चात संघीय अपेक्षा के लिए आचार्यश्री तुलसी ने सरल-सौम्य साधिका ‘शासनश्री’ विदुषी साध्वी आनंदकुमारीजी के सिंघाड़े में नियोजित किया। साध्वी आनंदकुमारीजी भी एक दिव्य आत्मा थीं। सहवर्ती सभी साध्वियां एक से बढ़कर एक थीं। मेरे अग्रणी मुनिश्री सुमेरमलजी ‘सुमन’ यथावसर फरमाते थे कि साध्वी आनंदकुमारीजी के साथ सभी साध्वियां अच्छी हैं। आत्मीयता से एक होकर रहती हैं। साध्वी आनंदकुमारीजी की संसारपक्षीय माताश्री साध्वी सज्जनाजी, अग्रणी साध्वी आनंदकुमारीजी, साध्वी भीखां जी आदि साध्वियों की सेवा करके आपने अपने व्यक्तित्व का विकास किया। आचार्यों के हृदय में विश्वास का स्थान बनाया।

वर्तमान में आपको सुदीर्घजीवी ‘शासनश्री’ साध्वी बिदामांजी जो वर्तमान में लगभग-१०८ वर्षों की हैं, उनकी स्वर्णिम सेवा का दुर्लभ अवसर प्राप्त है। साध्वी बिदामांजी तेरापंथ धर्मसंघ की नहीं अपितु जैन धर्म एवं धार्मिक जगत की परम पवित्र दिव्य आत्मा हैं। ऐसी साध्वी की सेवा का अवसर आपको सौभाग्य से प्राप्त हुआ है। साध्वी बिदामांजी के कुछ परिजनों ने मुझे भी कहा- ‘साध्वी बिदामांजी के आयुष्य वृद्धि में साध्वी उज्ज्वलरेखाजी की सेवा है। मां-बेटी की इस जोड़ी ने सेवा का अनुपम आदर्श धर्मसंघ में स्थापित किया है।’

सहवर्ती साध्वी अमृतप्रभाजी एवं साध्वी स्मितप्रभाजी आपके दो हाथ हैं, वहीं साध्वी हेमप्रभाजी और साध्वी नयप्रभाजी आपके दाएं-बाएं पैर हैं। चारों साध्वियों का सुयोग आपको प्राप्त है। आपकी हर दृष्टि की आराधना तन-मन एवं समर्पण भाव से करती हैं। तेरापंथ के तीन आचार्यों का अनंत वात्सल्य, करुणामयी कृपा आत्मीय आशीर्वाद आपको मिला।

संयम जीवन के 50 वर्ष की संपन्नता पर शुभ भावों से श्रद्धामय, समर्पण के साथ असीम अनंत आध्यात्मिक मंगलकामनाएं। आप ज्ञान, दर्शन, चारित्र की त्रिवेणी में स्नान कराते हुए कल्याण के मार्ग पर सदा बढ़ते रहें।

आपका अपना लघु सहेादर भ्राता
मुनि रमेश कुमार