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लाडनू का एक ऐतिहासिक स्थल [भाग-2]

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हाँ तो लभभग सालभर में लाडनूं की हवेलियां बनकर तैयार हो गई। इसी बीच बीकानेर के महाराजा सरदारसिहजी के नये दीवान सुराणाजी से भी अनबन हुई। महाराज ने पुराने दीवान महारावजी को ही पुनः दीवानगी पर नियुक्त किया ।

बीकानेर महाराजा के मुंहलगे व्यक्तियों में एक थे बीनादेसर के ठाकुर दुलेसिंहजी । एक दिन बात में वे कह बैठे- "महाराज ! ढ़ाबली दुनियाँ ने, जाणै बाप को सो माल हो जको भेज दिया थोड़ा राजलदेसर"। महाराजा को यह बात चुभी ।

महाराव जी और बैद परिवार का सम्बन्ध तो बहुत प्राचीन था ही। वैसे ये दोनों परिवार एक ही हैं। जोधपुर से राब बीकोजी के साथ एक भाई लाखनसिंहजी बैद (महारावजी बाले) आए और बीकानेर बसे । राव बीदोजी के साथ दूसरे भाई दस्सूजी बैद (राजलदेसर वाले) आए और राजलदेसर से डेढ कोस दूर बीदासर के रास्ते पर देसूसर नामक गाँव बसाया।

हाँ तो महाराबजी भी सेठ लखीरामजी को लाडनूं से पुनः राजलदेसर लाना चाहते थे। प्रयत्न हुआ। महाराजा बीकानेर ने उन्हें बुलावा भेजा। परन्तु वे राजलदेसर जाने से इन्कार हो गये। दो बार बीकानेर से हाकिम (नाजम) आए, पर सेठ लछीरामजी भी पकड़ के बड़े पक्के थे। उन्होंने साफ कह दिया- राजलदेसर में हवेली-ढूंढे पड़े हैं। राज उन्हें ले जाए, बेच खाए, पर हम नहीं आने के। अंत में महारावजी के हाथ का रुका आया और सेठजी बीकानेर पहुंचे। महाराजा से भेंट बार्ता हुई। सेठ लछीरामजी ने कहा कि अब हम सरकार के कामदार (मुंहताई) के रूप में नहीं रहना चाहते। यदि आप सामान्य नागरिक के रूप में साहूकारी का खिताब बख्शीश करते हैं, तो हमें वहाँ रहना मंजूर है, अन्यथा नहीं। महाराजा ने उन्हें बहुत समझाया-बुझाया, पर वे टस से मस नहीं हुए। अंत में महाराजा को सेठजी की मांग स्वीकार करनी पड़ी। साहूकारी का कागद लिखकर दिया गया। मुँहताई और सरकारी तीन हजार बोघा जमीन छोड़ वे राजलदेसर पुनः आ बसे। इधर लाडनूं की नवनिर्मित हवेलियों तैयार हो गई थीं। केवल छत्त पर की डोलियों और रूसों का काम बाकी था। परन्तु सेठजी को उसमें रहने का अवसर ही न मिला।

वि० सं० 1932 की घटना है कि चतुर्थाचार्य श्रीमद् जयाचार्य लाडनूं पंचायती के नोहरे में विराज रहे थे। आगम साहित्य का वाचन-मनन चल रहा था। जयाचार्य एक महान साहित्यकार तो थे ही, पर इसके साथ-साथ परम योगी भी थे। घंटों-घंटों तक कपाल में श्वास निरोध कर ध्यान में तल्लीन हो जाते थे। पंचायती नोहरा सार्वजनिक स्थान था, अतः वहाँ लेखन और साधना के लिए सुविधा कम मिलती थी। जयाचार्य कई दिनों से एकान्त एवं विशाल स्थान की तलाश में स्थानीय श्रावकों से जांच-पड़ताल की गई। थे। स्थान के लिए आखिर सब का ध्यान इस हवेली (वर्तमान संतों का ठिकाणा )की ओर गया। अभी तक उसमें कोई रहवास नहीं था। एकान्त, विशाल आदि सब दृष्टियों से संतों के लिए साताकारी जान, एक दिन सांयकाल जयाचार्य आठ संतों को साथ लेकर देखने के लिए इस हवेली में पधारे। सांयकालीन वन्दना हुई, संतों ने प्रतिक्रमण किया, तत्त्व चर्चाएँ चलीं और लोग सेवा-स्वाध्याय कर अपने-अपने घरों को लौट गये। प्रहर रात्रि आ चुकी थी। सयन का समय हो गया था। अतः आचार्य श्री पोल के ऊपर उत्तर दिशा वाले कमरे में सोने के लिए पधार गये। शेष संत अपने बिछौने कर सो गये। चारों ओर रात्रि का नौरव और शान्त वातावरण था । सभी निद्रा में सुखपूर्वक सो रहे थे। आधी रात बीती। लगभग 12/01 का समय होगा कि जयाचार्य प्रदिदिन को भांति उठे और ध्यान में बैठ गये। उन्हें ध्यान में कुछ आभास-सा हुआ कि कोई अलीत-पलीत सी छाया उनके सामने खड़ी है। ध्यान को पारा। देखते हैं तो एक विचित्र आकृति उनके सामने खड़ी है। जयाचार्य बड़े निर्भीक व्यक्ति थे। भय नाम की कोई वस्तु नहीं थी। तत्काल स्थिति को भांप गये और मुस्कराते हुए पूछा- देवानुप्रिय ! तुम कौन ?

पीरजी -मैं यहां का अधिष्ठाता पीर ।

जयाचार्य- इस नीरव वेला में किस लिए ?

पीरजी- यह मेरा स्थान है, मैं चाहता है कि आप यहाँ न रहें।

जयाचार्य क्यों ?

पीरजी- रातभर की गुनगुनाहट, टसमस और आपके साथ लोगों का इतना जमघट मुझे पसन्द नहीं है।

जयाचार्य - देवानुप्रिय ! यदि ऐसी ही इच्छा है तो कल हम सूर्योदय होने पर यहाँ से चले जाएँगे। इतना कह जयाचार्य पुनः ध्यानस्थ हो गये और पीरजी अदृश्य ।

समीप में सोये हुए संतों को बीती घटना का कुछ भी पता न चला और न ही जयाचार्य ने किसी के सामने इसका रहस्योद घाटन किया। प्रातःकाल हुआ, सूर्य अपनी सुनहरी किरणों को बिखेरता हुआ उदित हुआ। संत अपने-अपने आवश्यक कायों से निवृत्त हुए। जयाचार्य सभी संतों को साथ ले पुतः पंचायती के नोहरे में पधार गये। वहाँ रहते हुए दो दिन बीते। दूसरे दिन की रात्रि की वही मध्य वेला। जयाचार्य आज भी सदा की भांति निद्रा त्याग ध्यान में बैठ गये। कुछ समय व्यतीत हुआ होगा कि सहसा वे हो पीर पुनः जयाचार्य के सम्मुख उपस्थित हुए ।

(शेष जैन भारती 9- जुलाई 1972 के अंक से देखना है )